ग्वालियर। मुख्यमंत्री (CM) शिवराजसिंह चौहान (Shivraj singh chouhan) भूमाफिया को जमीन में गाड़ने का दावा करते हैं लेकिन हकीकत में न तो भूमाफिया गाड़े जा रहे हैं और न ही उनमें शासन- प्रशासन का कोई खौफ है। ग्वालियर (Gwalior) में करीब साढ़े चार सौ साल पुरानी ऐतिहासिक गंगादास की धर्मशाला (Gangadas ki dharmshala) की कोरोड़ों रुपये मूल्य की जमीन एसडीएम (sdm) की फर्जी एनओसी (NOC) से हथियाने के मामले में तो यही नजर आ रहा है। सरकार की आंखों में धूल झोंककर कब्जाई गई इस बेशकीमती जमीन पर ऑटोमोबाइल का बड़ा शोरूम तान दिया गया है। इस मामले में कई शिकायतों के बाद भी कोई कार्रवाई नहीं हो रही है।
ट्रस्ट की बेशकीमती जमीन पर ताना ऑटोमोबाइल शोरूम
ग्वालियर में फूलबाग (Gwalior phool bagh) के पास मंदिर राम जानकी गंगादास की बड़ी शाला की जमीन पर शहर के बड़े कारोबारी चरणजीत नागपाल (charanjeet nagpal) ने ऑटोमोबाइल का एक बड़ा शोरूम बना दिया है। यह शोरूम जिस जमीन पर बनाया गया है वो सरकारी दस्तावेजों में गंगादास की बड़ी शाला पब्लिक ट्रस्ट के नाम पर दर्ज है। जब यह जमीन ट्रस्ट की है तो फिर यहां शोरूम कैसे बन गया। शहर के बीच मौके की जमीन हथियाने की साजिश 31 मार्च 2012 में तब शुरू हुई थी जब चरणजीत नागपाल ने ट्रस्ट की किराएदार मनमोहन कौर (manmohan kaur) से जमीन का एक हिस्सा और इस पर बना एक मकान खरीदना बताया। इसके लिए एक दिखावटी विक्रय पत्र को आधार बनाया गया। चूंकि इस जमीन का मालिकाना हक मनमोहन कौर के पास नहीं था इसलिए मामला डिस्ट्रिक्ट कोर्ट में पहुंचा।
जिला न्यायालय ने जमीन का स्वामित्व नकारा
ग्वालियर जिला अदालत (Gwalior district court) ने जमीन पर मनमोहन कौर के स्वामित्व को नकार दिया। इस फैसले के खिलाफ मनमोहन कौर ने ग्वालियर हाईकोर्ट में अपील दायर की। हाई कोर्ट में ये मामला चल ही रहा था उसी वक्त रजिस्ट्रार पब्लिक ट्रस्ट यानि एसडीएम दफ्तर की तरफ से 7 मार्च 2012 एक एनओसी जारी की गई। इस एनओसी में कहा गया कि जमीन ट्रस्ट में पंजीकृत नहीं है इसलिए ट्रस्ट को जमीन बेचने का अधिकार है। इस एनओसी के आधार पर चरणजीत नागपाल ने वर्किंग ट्रस्टी रामसेवक दास (ramsevak das) से मिलीभगत कर एग्रीमेंट के आधार पर औने-पौने दाम में यह जमीन खरीद ली।
आरटीआई से हुआ जमीन हथियाने के फर्जीवाड़े का खुलासा
जमीन हथियाने के बड़े खेल का खुलासा अनुविभागीय अधिकारी एवं पंजीयक लोक न्यास कार्यालय से सूचना के अधिकार के तहत 11 दिसंबर 2014 को हासिल की गई जानकारी से हुआ। इस मामले में शिकायतकर्ता ने जानकारी मांगी कि ट्रस्ट की जमीन की एनओसी कैसे जारी हो गई। आरटीआई में जवाब मिला कि इस कार्यालय से ऐसी कोई एनओसी जारी नहीं की गई है। इससे साफ हो गया कि ट्रस्ट की जमीन हथियाने के लिए फर्जी एनओसी का इस्तेमाल किया गया है।
वर्किंग ट्रस्टी भी मिलीभगत में शामिल
इसके बाद शिकायकर्ता मुकेश जैन ने इस मामले की शिकायत कलेक्ट्रेट में की। उनका कहना है कि वे इस मामले में पिछले करीब 8 साल से पुलिस-प्रशासन में लगातार प्रमाण के साथ शिकायत कर रहे हैं लेकिन कहीं कोई सुनवाई नहीं हो रही है। फर्जी एनओसी के जरिए जमीन की डीड भी हो गई है। उनका आरोप है कि इस मामले में ट्रस्ट के महंत रामसेवक दास की भी मिलीभगत है। उनकी सहमति के बगैर जमीन बिक नहीं सकती थी। एसडीएम कार्यालय की फर्जी एनओसी के आधार पर जमीन हथियाने के इस गंभीर मामले की शिकायत होने के बाद भी कोई कार्रवाई न होने पर कलेक्टर कौशलेंद्र विक्रम सिंह से चर्चा के कई प्रयास के बाद भी संपर्क नहीं हो सका। इस मामले में जिला प्रशासन का पक्ष जानने के लिए द सूत्र के संवाददाता ने कलेक्टर को वाट्सएप मैसेज भी किया लेकिन उन्होंने कोई जवाब नहीं दिया।
आरोपियों ने नहीं दिया कोई जवाब
ट्रस्ट की करोड़ों की जमीन को अवैध रूप से हथियाने का ये मामला जांच के नाम पर बरसों से कलेक्टर कार्यालय में अटका हुआ है। इस मामले में कारोबारी चरणजीत नागपाल और महंत रामसेवक दास का पक्ष जानने के लिए द सूत्र ने दोनों से संपर्क करने की कोशिश की। उन्हें वाट्सएप मैसेजेस भी किए लेकिन दोनों ने ही कोई जवाब नहीं दिया।